महात्मा गांधी : अहिंसा के पूजारी, राष्ट्रपिता व भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अगुवा |
महात्मा गांधी द्वारा अपनी पत्नी कस्तूरबा को लिखे एक खत से उनके जीवन व अपने देश के प्रति समर्पण की झलक मिलती हैं तो एक संस्मरण में उनके समय प्रबंधन की झलक वहीं उनका हत्यारा नथूराम गोडसे महात्मा गांधी के द्वारा की गई देश सेवा के प्रति नतमस्तक था |
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09.11.1908
तेरी तबीयत के बारे में श्री वेहर ने आज तार भेजा हैं | मेरा ह्रदय चूर-चूर हो रहा हैं; परंतु तेरी चाकरी करने के लिए आ सकूँ, ऐसी स्थिति नहीं है | सत्याग्रह की लडा़ई में मैंने सब कुछ अर्पित कर दिया है | मैं वहां आ ही नहीं सकता | जुर्माना भर दूं, तभी आ सकता हूं | जुर्माना तो हरगिज़ नहीं दिया जा सकता ! तू साहस बनाए रखना | कायदे से खाना खाओगी तो ठीक हो जाओगी | फिर भी मेरे नसीब से तू जाएगी ही, ऐसा होगा तो मैं तुझको इतना लिखता हूँ कि तू वियोग में, पर मेरे जीते-जी चल बसेगी, तो बुरी बात न होगी | मेरा स्नेह तुझ पर इतना कि मरने पर भी तू मेरे मन में जीवित ही रहेगी ! यह मैं तुझसे निश्चचयपूर्वक कहता हूँ कि अगर तुझे जाना ही होगा, तो तेरे पीछे मैं दूसरी स्त्री करने वाला नहीं हूँ ! यह मैंने तुझे एक-दो बार कहा भी हैं | तू ईश्वर पर आस्था रखकर प्राण छोड़ना, तू मरेगी तो वह भी सत्याग्रह के अनुकूल है | मेरी लडा़ई केवल राजकीय नहीं है | यह लडा़ई धार्मिक है अर्थात अति स्वच्छ है | इसमें मर जाएँ तो भी क्या और जीवित रहें तो भी क्या ? तू भी ऐसा ही जानकर अपने मन में ज़रा भी बुरा नहीं मानेगी, ऐसी मुझे उम्मीद है | तुमसे यह मेरी माँग है !
-म. गांधी
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महात्मा गांधी का समय प्रबंधन हम सबके लिए अनुकरणीय हैं -
महात्मा गांधी वक्त के पाबंद थे | समय प्रबंधन को लेकर उनका विचार था कि जितना काम हम कर सकते है, अगर उससे कम करते है, तो यह एक प्रकार की चोरी है | इसीलिए गांधी इस पर हमेशा जोर देते थे |
समय प्रबंधन का गांधी जी के जीवन का एक सटीक उदाहरण -
एक प्राध्यापक को लिखे पत्र में वे कहते है: मेरी घडी़ मुझे याद दिला रही है कि अब चहलक़दमी का समय हो गया है और उसकी आज्ञा का पालन मुझे करना ही होगा, इसलिए मैं इस पत्र को यहीं समाप्त करता हूं |
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30 जनवरी 1948 पांच बजकर बारह मीनट पर नथूराम गोडसे ने प्रार्थना सभा के लिए जा रहे महात्मा गांधी को गोली मारकर हत्या कर दी | पुरा देश स्तब्ध रह गया | बापू के प्रति पुरे देश की श्रद्धा थी |
नथूराम गोडसे भी उनके देशसेवा का कायल था पर अंतिम समय में गोडसे महात्मा गांधी को हिन्दुस्तान के बँटवारे का दोषी व पक्षपाती माना और इस दुष्कृत्य को अंजाम दे बैठा |
नथुराम गोडसे 'गांधी वध क्यों?' में लिखता है - "मैं मानता हूँ कि गांधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए, जिसके कारण मैं उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, किंतु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमी के विभाजन का अधिकार नहीं था |
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता हूँ | मैं यह भी नहीं चाहता हूँ कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करे |
अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है | यदि वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य-पद पर मेरा नम्र अधिकार है |
मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य नीति की दृष्टि से पूर्णतया उचित है | मुझे इस बात में लेशमात्र भी संदेह नहीं कि भविष्य में कीसी समय सच्चे इतिहासकार लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएँगे |
-नथूराम गोडसे
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🖋 दीप सिंह दूदवा
महात्मा गांधी द्वारा अपनी पत्नी कस्तूरबा को लिखे एक खत से उनके जीवन व अपने देश के प्रति समर्पण की झलक मिलती हैं तो एक संस्मरण में उनके समय प्रबंधन की झलक वहीं उनका हत्यारा नथूराम गोडसे महात्मा गांधी के द्वारा की गई देश सेवा के प्रति नतमस्तक था |
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09.11.1908
तेरी तबीयत के बारे में श्री वेहर ने आज तार भेजा हैं | मेरा ह्रदय चूर-चूर हो रहा हैं; परंतु तेरी चाकरी करने के लिए आ सकूँ, ऐसी स्थिति नहीं है | सत्याग्रह की लडा़ई में मैंने सब कुछ अर्पित कर दिया है | मैं वहां आ ही नहीं सकता | जुर्माना भर दूं, तभी आ सकता हूं | जुर्माना तो हरगिज़ नहीं दिया जा सकता ! तू साहस बनाए रखना | कायदे से खाना खाओगी तो ठीक हो जाओगी | फिर भी मेरे नसीब से तू जाएगी ही, ऐसा होगा तो मैं तुझको इतना लिखता हूँ कि तू वियोग में, पर मेरे जीते-जी चल बसेगी, तो बुरी बात न होगी | मेरा स्नेह तुझ पर इतना कि मरने पर भी तू मेरे मन में जीवित ही रहेगी ! यह मैं तुझसे निश्चचयपूर्वक कहता हूँ कि अगर तुझे जाना ही होगा, तो तेरे पीछे मैं दूसरी स्त्री करने वाला नहीं हूँ ! यह मैंने तुझे एक-दो बार कहा भी हैं | तू ईश्वर पर आस्था रखकर प्राण छोड़ना, तू मरेगी तो वह भी सत्याग्रह के अनुकूल है | मेरी लडा़ई केवल राजकीय नहीं है | यह लडा़ई धार्मिक है अर्थात अति स्वच्छ है | इसमें मर जाएँ तो भी क्या और जीवित रहें तो भी क्या ? तू भी ऐसा ही जानकर अपने मन में ज़रा भी बुरा नहीं मानेगी, ऐसी मुझे उम्मीद है | तुमसे यह मेरी माँग है !
-म. गांधी
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महात्मा गांधी का समय प्रबंधन हम सबके लिए अनुकरणीय हैं -
महात्मा गांधी वक्त के पाबंद थे | समय प्रबंधन को लेकर उनका विचार था कि जितना काम हम कर सकते है, अगर उससे कम करते है, तो यह एक प्रकार की चोरी है | इसीलिए गांधी इस पर हमेशा जोर देते थे |
समय प्रबंधन का गांधी जी के जीवन का एक सटीक उदाहरण -
एक प्राध्यापक को लिखे पत्र में वे कहते है: मेरी घडी़ मुझे याद दिला रही है कि अब चहलक़दमी का समय हो गया है और उसकी आज्ञा का पालन मुझे करना ही होगा, इसलिए मैं इस पत्र को यहीं समाप्त करता हूं |
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30 जनवरी 1948 पांच बजकर बारह मीनट पर नथूराम गोडसे ने प्रार्थना सभा के लिए जा रहे महात्मा गांधी को गोली मारकर हत्या कर दी | पुरा देश स्तब्ध रह गया | बापू के प्रति पुरे देश की श्रद्धा थी |
नथूराम गोडसे भी उनके देशसेवा का कायल था पर अंतिम समय में गोडसे महात्मा गांधी को हिन्दुस्तान के बँटवारे का दोषी व पक्षपाती माना और इस दुष्कृत्य को अंजाम दे बैठा |
नथुराम गोडसे 'गांधी वध क्यों?' में लिखता है - "मैं मानता हूँ कि गांधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए, जिसके कारण मैं उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, किंतु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमी के विभाजन का अधिकार नहीं था |
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता हूँ | मैं यह भी नहीं चाहता हूँ कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करे |
अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है | यदि वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य-पद पर मेरा नम्र अधिकार है |
मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य नीति की दृष्टि से पूर्णतया उचित है | मुझे इस बात में लेशमात्र भी संदेह नहीं कि भविष्य में कीसी समय सच्चे इतिहासकार लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएँगे |
-नथूराम गोडसे
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🖋 दीप सिंह दूदवा