धापू आज बडी़ खुश थी .... आखिर हो भी क्यों न | न जाने कीतने एकासणे किये थे, अपने सपनों के राजकुमार को पाने के लिए | वो जो आज उससे मिलने जो आया था |
चार वर्ष की उम्र में ही मां सदा के लिए धापू को छोडकर जा चुकी थी | दुनियां में रिश्तेदार के नाम पर केवल बापू ही था | बचपन बडी़ मुश्किल से गुजरा .. बापू ने ही मां व बाप की भुमिका निभाई |
खाना बनाने से लेकर कपडे़ धोने,झाडू निकालने, कच्चे घर में गार निपने से लेकर बकरीयों को दाना-चुगा देने तक का काम बापू ही करते थे | घर में दो वक्त की रोटी का सही जुगाड़ न होते हुए
भी धापू का बापू हमेशा धापू को ऊंचे ख्वाब दिखाता था |
जब धापू ठीक से बोलने व चलने लगी तो बापू ने गांव के ही सरकारी स्कुल में धापू का नाम लिखवा दिया था | धापू पढने में बडी़ तेज थी | धापू जब स्कुल जाती तो उसका बापू गांव में ही बळीतें (लकडियां) फाडने का काम करता था | स्कुल की छुट्टी होने से कुछ समय पहले ही घर लौट आता था, ताकि इकलौती बेटी को अकेलापन महसुस न हो |
समय गुजरने के बाद अब धापू नवमी कक्षा में आ चुकी थी | अब तक वो बडी़ समझदार हो चुकी थी | घर का सारा काम निपटा लेती थी | जैसे-जैसे धापू की उम्र बढ़ रही थी वैसे-वैसे बापू की चिंता भी दिनों-दिन बढने लगी थी |
धापू कक्षा में हमेशा प्रथम तो कीरता द्वितीय स्थान पर आता था | कीरता उसकी कक्षा में पढने वाला सीधा-सादा लडका था | कीरता भी आठ साल की उम्र में अपनी मां को खो चुका था | धापू और कीरता में हमेशा स्वच्छ प्रतिस्पर्धा होती थी, चाहे परीक्षा हो या निबंध प्रतियोगिता, बाल सभा हो या भाषण प्रतियोगिता हमेशा दोनों का नाम ही अव्वल पर होता था | कई बार धापू की सहेलियां धापू से मजाक कर कहती थी, 'कि तुम दोनों की तो जोडी़ बन गई हैं .. जहां धापू वहां कीरता और जहां कीरता वहां धापू |' ये सुनकर धापू का चेहरा शरम के मारे लाल पीला हो जाता था | तो दूसरी तरफ कीरता के मित्र कीरता को चिढातें हुए हुए कहते थे, कि तुम्हारी तो जोडी़ नम्बर वन हैं ..भगवान ने ही बनाकर भेजी हैं | इस मजाक से धापू व कीरता में असहजता होने लगी थी |
आज रविवार का दिन था | धापू का बापू अपनी झुपडी़ के उपर देने हेतु सणीये लेने खेत में गया हुआ था | धापू अकेली ही घर थी | उसने खाना बनाया और बर्तन धोये, बर्तन धोने के बाद वह झुपडी पर पुराने काले पड़ चुके सणीयों को एक-एक कर नीचे गिराने लगी | अभी पांच-सात सणीये ही नीचे गिराये होंगे, कि उसका सहपाठी कीरता उसके घर आ गया | पहले तो वो एकदम हड़बडा़ गई क्योंकि कीरता पहली बार उसके घर आया था | लेकिन बाद में संभल गई | क्योंकि कीरता समझदार व होनहार नेक दिल लड़का था | वह उसको देखकर उसके स्वागत में हल्की सी मुस्कराई, तो कीरता भी हल्का सा मुस्कराया |
धापू ने कीरता से आने का कारण पुछा, तब कीरता ने बताया की वह उसके बापू को बुलाने आया हैं | दो दिन बाद रामदेवजी की जागरण हैं, घर पर बळीते (लकडियां) फाडने हैं | तब धापू ने बताया की उसका बापू खेत में सणीये लेने गया हुआ हैं | ऐसा कहकर वह कीरते को पानी पीलाने के लिए नीचे उतरने लगी | झोपडे़ से नीचे उतरते देख कीरते ने उतरने का मना कर दिया, और कहा कि, 'सणीये नीचे डालते थक गई होगी इसलिए उतरने व वापिस चढने की परेशानी मत देख |' और ऐसा कहकर उसने स्वयं लोटा लेकर खुद ही पानी पी लीया, और खुद पानी पीने के बाद वापिस लोटा भरकर धापू के सामने कर दिया | अब धापू शरम के मारे पसीना-पसीना हो गई | कीरते के हाथ से लेकर उसने पानी पीने का प्रयत्न कीया, पर पानी गले से नीचे नही उतर रहा था | जैसे-तैसे आधा लोटा पानी पीया और लोटा कीरते की तरफ बढाया, तो दोनों की अंगुली एक दुसरे के टच हो गई | अंगुली के आपस में टच होने से धापू के शरीर में अजीब सा करंट दौड गया | वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही कीरते की आवाज ने उसका ध्यान भंग कर दिया | कीरता बोला, 'आने दो एक-एक सणीया, तुम उपर से दो, मैं इसे नीचे जमाता हूं |' धापू कुछ कह पाती उससे पहले ही कीरते ने सणीया लेने के लिए हाथ आगे बढा दिया |
अब धापू एक-एक करके सणीया नीचे कीरते को देने लगी | कुछ देर तो दोनों मौन रहे, पर थोडी देर बाद कीरते ने मौन तोडते हुए पुछा- "धापू तेरी मां अभी तक नजर नहीं आई?" इतना सुनते ही धापू के आंख से एक आंसू छलक आया | अब कीरता पुरी कहानी समझ चुका था | अब तक सारे सणीये भी झुपडी़ से नीचे आ चुके थे | कीरता ने धापू को नीचे आने का ईशारा कीया, पर अब धापू के लिए उतरना मुश्किल था | क्योंकि सभी वळे (झोपडे़ की लकडीयां) भी नीचे फेंक दिये जा चुके थे |
कीरते ने धापू की वस्तु-स्थति भांपते हुए उसे सहारा देने के उद्देश्य से हाथ उपर कीये पहले तो धापू शरमा गई, पर दुसरा कोई सहारा न देखते हुए कीरते के दोनों उपर कीये हाथों के सहारे नीचे कुदी | कुदते ही कीरते ने अपने शरीर का बैलेंस बनाते हुए उसे कैच कर दिया | अब धापू कीरते के बाहों में थी | कीरता ने उसे संभालते हुए नीचे लिया |
अब कीरता घर जाने के लिए जैसे ही रवाना हुआ, तो धापू ने खाना खाकर जाने को कहा | कीरते ने धापू को अकेली देख खाना खाना उचित नहीं समझा, पर धापू के खुद की सोगन डालने पर कीरता रूक गया | आखिर रूकता भी क्युं नहीं ! कक्षा की सबसे होशियार लडकी अपने हाथो का बना खाना जो खिला रही थी | दोनों ने हाथ धोये व खाने के लिए दोनों एक ही दरी पर पास में ही बैठ गये |
आज धापू ने अपने हाथ से पतले-पतले सोगरे व सनवेळें की सब्जी बनाई थी | धापू ने कीरता को वाटके में सोगरा व सोगरे के उपर सनवेळें की सब्जी रखने के बाद, घीलोटी से टीपरी भरकर घी डालने लगी | इतने में कीरते ने धापू का हाथ पकड़ लीया और घी एक शर्त पर ही लेने की बात कहने लगा | धापू भी उसकी शर्त को मानने को तैयार हो गई, क्योंकि वह अपने साथी को कोरा कैसे खाने देती | तब कीरता ने शर्त रखी कि वह घी उसी शर्तानुसार सोगरे पर लेगा, यदि वह खाना उसके साथ ही खायेगी | अब धापू धर्म-संकट में फंस चुकी थी, न तो ना कर सकती थी और ना ही एकदम से हां | आखिर धापू ने घीलोटी पकडकर टीपरी से सोगरे पर घी डालने लगी, अब कीरता धापू की मौन स्वीकृति को समझ चुका था | कीरते ने पांचो अंगुली सोगरे के बीच पडे़ सनवेळें व घी में डुबोते हुए एक छोटा अच्छा कौर तैयार कीया और धापू के मुंह की तरफ बढा दिया | अब धापू की बारी थी उसने भी अपने मखमल से हाथों से छोटा कौर बनाया और कीरते की तरफ बढाने को ही थी, कि धापू का हाथ धूजने लगा | कीरता समझ गया, उसने अपने हाथ धापू की तरफ बढाते हुए धापू के दोनों हाथ पकड़ कर उसके मखमली हाथ का कौर अपने मुंह तक ले गया | अब धापू का चेहरा शरम के मारे नीचे झुक गया |
अब दोनों एक दुसरे को कौर देने लगे और एक दुसरे की आंख से आंख मिलाने लगे | इतने में अचानक गोगर बिल्लें ने थाली में जोर से उनके हाथ पर पंजा मार दिया | जिससे दोनों का अचानक से ध्यान भंग हुआ और हडबडाहट से उछल पडे़ | देखा तो अब तक वे पुरा सोगरा कभी का खा चुके थे | वे केवल आंख में आंख डाले, दोनों हाथ थाली में डाले लंबे समय से बैठे थे | गोगर बिल्ले के खलल ने उन्हें उठकर हाथ धोने को मजबुर कर दिया |
अब धापू एटवाडी प्लेट लिए एक कोने में खडी थी और कीरता घूणीयें मेंसे पानी लेकर हाथ धो रहा था, कि अचानक .... "ऐ धापूडी..ऐ धापूडी" की आवाज सुनाई पडी़ |
धापूडी - "जी ... बापूजी..." कहकर बापू के सामने दौड़ पडी़, और बापू के माथे पर से सणीये के भारे को नीचे उतारा |
प्यासे बापू ने धापू से पानी मांगा | धापू ठाडी़ मटकी से बापू के लिए
पानी लेकऱ गई, तो कीरता भी धापू के पिछे-पिछे गया और बापू के धोक लगा दी |
बापू ने उस चेहरे को पहचानने की कोशिश के रूप में अपनी आंखो पर जोर डालते हुए उसकी तरफ देखा... पर चेहरा अनजाना सा नजर आया | इस बीच धापू बिच में ही बोल पडी- "बापू ओ कीरतो हैं ... म्हारें कक्षा में पढे हैं... हर साल कक्षा में सैंकड आवे हैं... भूरजी रो हैं |" भूरजी का नाम सुनते ही बापू ने गौर से उसकी तरफ टकटकी लगाकर देखा.. फिर धापू की तरफ ... दुबारा उसकी तरफ ... फिर धापू की तरफ .... |
धापू और कीरता भी विचार में पड़ गये | आखिर माजरा क्या हैं ....... ?
बापू की आंखो में आज आशा की एक कीरण जग चुकी थी |
बापू ने कीरता को आने का कारण पुछा, तो कीरता ने बापू को बताया की, 'दो दिन बाद घर में जागरण हैं इसलिए आपको बळीतें फाडने का कहने के लिए आया था |'
बापू में एकबार फिर उत्साह की ज्योत जगती नजर आई | बापू कीरते को बोले- " जरूर आऊंगा .... आज तो जरूर आऊंगा ... |
जवाब सुनकर कीरता घर के लिए चल पडा़ | गुआडी के अदबिच जाकर कीरते ने पिछे नजर दौडाई, तो देखा कि बापू उसे टकटकी लगाये देख रहे है, तो उसके पिछे धापू भी मंद-मंद मुस्करा रही हैं |
बापू ने कुल्हाडी़ उठाई और पास पडे़ छीण के टूकडे पर कुल्हाडी़ को रगड़कर धार करने लगा | धार करने के बाद धापू को आवाज लगाई ... ऐ धापू ..!
बापू की आवाज सुनकर धापू दौडकर नजदीक आई | बापू ने उसके चेहरे को गौर से देखा और हल्की सी मुस्कान बिखेर दी | और कुल्हाडी उठाकर चल पडा़ भूरजी के घर की तरफ |
अब भूरजी के घर पहुंचने पर बापू की नजर सबसे पहले कीरता पर पडी़ | कीरता दो पत्थरों के बीच तख्ता रखकर उस पर बैठे-बैठे किताब के पन्ने पलट रहा था |
कीरता ने धापू के बापू को घर आये देखकर राम-राम कर धोक लगाई और थणी पर लटक रही बगती से ठंडे पानी का लोटा भरकर ले आया |
बापू की नजर कभी लोटे पर तो कभी कीरते पर अटक रही थी | इतने में अचानक "राम-राम ..." की आवाज सुनाई पडी. | पिछे मूडकर देखा तो हाथ में गेडी़ लिए भूरजी खडे थे |
भूरजी ने बापू से गर्म जोशी से हाथ मिलाया | पर आज धापू का बापू थोडा़ नर्वस था ... |
भूरजी ने अमल की मनुहार करते हुए धापू के बापू के नर्वस चेहरे को पढ लिया था | भूरजी ने अमल की मनुहार करते हुए धापू के बापू को माडेही पाव तौला अमल गटका दिया | अमल देने के बाद धापू के बापू से भूरजी ने अपनी चिंता का कारण पुछा | तो बापू ने चेहरे पर मामूली सी चिंता मिश्रित मुस्कराहट लाकर कारण टालने का प्रयास कीया |
पर भूरजी के जोर देने पर बापू ने मन को भारी करते हुए, नजर झुकाकर कहा कि, 'घर में बडी़ हो रही लडकी से बडी़ बाप की चिंता क्या हो सकती हैं?'
इतना सुनते ही भूरजी आत्मविश्वास से लबालब होकर बोले "अरे ! समधी जी ये चिंता मुझ पर छोड़ दो" इतना सुनते ही बापू पागल की भांति भूरजी के पांवो में गिरने लगे |
यह देख भूरजी ने बापू को उठाकर गले लगा दिया और बोले कि, 'आज बळीतें फाडनें का बुलावा तो एक मात्र बहाना था ! मैंने "पिछली स्वतंत्रता दिवस पर धापू का धारा प्रवाह भाषण सुना था, तब से धापू को बिंदणी बनाने की दिल में ठान ली थी .."
समधी जी तुम यदि आज तैयार नहीं होते, तो भी मैं येनकेन प्रकारेण यह रिश्ता करने की कोशिश जरूर करता |
इतना सुनते ही बापू का सीना गर्व से फुल गया |
बापू ने अपने जेब से एक रूपया निकालकर होने वाले जवाई (कीरता) को पकडा़ दिया |
हाथ में रूपया देख कीरता भी मन ही मन धापू के बारे में सोचकर फुले नही समां रहा था |
अब भूरजी ने धापू के बापू को घुड-धनिया खिलाकर (नये समधी) को रवाना कीया |
बापू रास्तें में चलते-चलते फुले नही समां रहा था | जैसे ही घर पहूंचा, "धापू...ऐ..धापू ..." चिल्लानें लगा | इस बार बापू की आवाज में पुर्ण संतोष के भाव थे | धापू भागती हूई आई, धापू को देख बापू उसके गले लिपट गया | जैसे बहुप्रतिक्षित स्वप्न आज पुरा हूआ हो | धापू भी मन ही मन कीरते के बारे में सोचकर फुले नहीं समां रही थी |
आज धापू और कीरता यह सोच कर खुश हुए जा रहे थे, कि चलो, आज सहपाठीयों की दुआओं को आखिर पंख तो लग ही गये |
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🖋 दीप सिंह दूदवा
चार वर्ष की उम्र में ही मां सदा के लिए धापू को छोडकर जा चुकी थी | दुनियां में रिश्तेदार के नाम पर केवल बापू ही था | बचपन बडी़ मुश्किल से गुजरा .. बापू ने ही मां व बाप की भुमिका निभाई |
खाना बनाने से लेकर कपडे़ धोने,झाडू निकालने, कच्चे घर में गार निपने से लेकर बकरीयों को दाना-चुगा देने तक का काम बापू ही करते थे | घर में दो वक्त की रोटी का सही जुगाड़ न होते हुए
भी धापू का बापू हमेशा धापू को ऊंचे ख्वाब दिखाता था |
जब धापू ठीक से बोलने व चलने लगी तो बापू ने गांव के ही सरकारी स्कुल में धापू का नाम लिखवा दिया था | धापू पढने में बडी़ तेज थी | धापू जब स्कुल जाती तो उसका बापू गांव में ही बळीतें (लकडियां) फाडने का काम करता था | स्कुल की छुट्टी होने से कुछ समय पहले ही घर लौट आता था, ताकि इकलौती बेटी को अकेलापन महसुस न हो |
समय गुजरने के बाद अब धापू नवमी कक्षा में आ चुकी थी | अब तक वो बडी़ समझदार हो चुकी थी | घर का सारा काम निपटा लेती थी | जैसे-जैसे धापू की उम्र बढ़ रही थी वैसे-वैसे बापू की चिंता भी दिनों-दिन बढने लगी थी |
धापू कक्षा में हमेशा प्रथम तो कीरता द्वितीय स्थान पर आता था | कीरता उसकी कक्षा में पढने वाला सीधा-सादा लडका था | कीरता भी आठ साल की उम्र में अपनी मां को खो चुका था | धापू और कीरता में हमेशा स्वच्छ प्रतिस्पर्धा होती थी, चाहे परीक्षा हो या निबंध प्रतियोगिता, बाल सभा हो या भाषण प्रतियोगिता हमेशा दोनों का नाम ही अव्वल पर होता था | कई बार धापू की सहेलियां धापू से मजाक कर कहती थी, 'कि तुम दोनों की तो जोडी़ बन गई हैं .. जहां धापू वहां कीरता और जहां कीरता वहां धापू |' ये सुनकर धापू का चेहरा शरम के मारे लाल पीला हो जाता था | तो दूसरी तरफ कीरता के मित्र कीरता को चिढातें हुए हुए कहते थे, कि तुम्हारी तो जोडी़ नम्बर वन हैं ..भगवान ने ही बनाकर भेजी हैं | इस मजाक से धापू व कीरता में असहजता होने लगी थी |
आज रविवार का दिन था | धापू का बापू अपनी झुपडी़ के उपर देने हेतु सणीये लेने खेत में गया हुआ था | धापू अकेली ही घर थी | उसने खाना बनाया और बर्तन धोये, बर्तन धोने के बाद वह झुपडी पर पुराने काले पड़ चुके सणीयों को एक-एक कर नीचे गिराने लगी | अभी पांच-सात सणीये ही नीचे गिराये होंगे, कि उसका सहपाठी कीरता उसके घर आ गया | पहले तो वो एकदम हड़बडा़ गई क्योंकि कीरता पहली बार उसके घर आया था | लेकिन बाद में संभल गई | क्योंकि कीरता समझदार व होनहार नेक दिल लड़का था | वह उसको देखकर उसके स्वागत में हल्की सी मुस्कराई, तो कीरता भी हल्का सा मुस्कराया |
धापू ने कीरता से आने का कारण पुछा, तब कीरता ने बताया की वह उसके बापू को बुलाने आया हैं | दो दिन बाद रामदेवजी की जागरण हैं, घर पर बळीते (लकडियां) फाडने हैं | तब धापू ने बताया की उसका बापू खेत में सणीये लेने गया हुआ हैं | ऐसा कहकर वह कीरते को पानी पीलाने के लिए नीचे उतरने लगी | झोपडे़ से नीचे उतरते देख कीरते ने उतरने का मना कर दिया, और कहा कि, 'सणीये नीचे डालते थक गई होगी इसलिए उतरने व वापिस चढने की परेशानी मत देख |' और ऐसा कहकर उसने स्वयं लोटा लेकर खुद ही पानी पी लीया, और खुद पानी पीने के बाद वापिस लोटा भरकर धापू के सामने कर दिया | अब धापू शरम के मारे पसीना-पसीना हो गई | कीरते के हाथ से लेकर उसने पानी पीने का प्रयत्न कीया, पर पानी गले से नीचे नही उतर रहा था | जैसे-तैसे आधा लोटा पानी पीया और लोटा कीरते की तरफ बढाया, तो दोनों की अंगुली एक दुसरे के टच हो गई | अंगुली के आपस में टच होने से धापू के शरीर में अजीब सा करंट दौड गया | वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही कीरते की आवाज ने उसका ध्यान भंग कर दिया | कीरता बोला, 'आने दो एक-एक सणीया, तुम उपर से दो, मैं इसे नीचे जमाता हूं |' धापू कुछ कह पाती उससे पहले ही कीरते ने सणीया लेने के लिए हाथ आगे बढा दिया |
अब धापू एक-एक करके सणीया नीचे कीरते को देने लगी | कुछ देर तो दोनों मौन रहे, पर थोडी देर बाद कीरते ने मौन तोडते हुए पुछा- "धापू तेरी मां अभी तक नजर नहीं आई?" इतना सुनते ही धापू के आंख से एक आंसू छलक आया | अब कीरता पुरी कहानी समझ चुका था | अब तक सारे सणीये भी झुपडी़ से नीचे आ चुके थे | कीरता ने धापू को नीचे आने का ईशारा कीया, पर अब धापू के लिए उतरना मुश्किल था | क्योंकि सभी वळे (झोपडे़ की लकडीयां) भी नीचे फेंक दिये जा चुके थे |
कीरते ने धापू की वस्तु-स्थति भांपते हुए उसे सहारा देने के उद्देश्य से हाथ उपर कीये पहले तो धापू शरमा गई, पर दुसरा कोई सहारा न देखते हुए कीरते के दोनों उपर कीये हाथों के सहारे नीचे कुदी | कुदते ही कीरते ने अपने शरीर का बैलेंस बनाते हुए उसे कैच कर दिया | अब धापू कीरते के बाहों में थी | कीरता ने उसे संभालते हुए नीचे लिया |
अब कीरता घर जाने के लिए जैसे ही रवाना हुआ, तो धापू ने खाना खाकर जाने को कहा | कीरते ने धापू को अकेली देख खाना खाना उचित नहीं समझा, पर धापू के खुद की सोगन डालने पर कीरता रूक गया | आखिर रूकता भी क्युं नहीं ! कक्षा की सबसे होशियार लडकी अपने हाथो का बना खाना जो खिला रही थी | दोनों ने हाथ धोये व खाने के लिए दोनों एक ही दरी पर पास में ही बैठ गये |
आज धापू ने अपने हाथ से पतले-पतले सोगरे व सनवेळें की सब्जी बनाई थी | धापू ने कीरता को वाटके में सोगरा व सोगरे के उपर सनवेळें की सब्जी रखने के बाद, घीलोटी से टीपरी भरकर घी डालने लगी | इतने में कीरते ने धापू का हाथ पकड़ लीया और घी एक शर्त पर ही लेने की बात कहने लगा | धापू भी उसकी शर्त को मानने को तैयार हो गई, क्योंकि वह अपने साथी को कोरा कैसे खाने देती | तब कीरता ने शर्त रखी कि वह घी उसी शर्तानुसार सोगरे पर लेगा, यदि वह खाना उसके साथ ही खायेगी | अब धापू धर्म-संकट में फंस चुकी थी, न तो ना कर सकती थी और ना ही एकदम से हां | आखिर धापू ने घीलोटी पकडकर टीपरी से सोगरे पर घी डालने लगी, अब कीरता धापू की मौन स्वीकृति को समझ चुका था | कीरते ने पांचो अंगुली सोगरे के बीच पडे़ सनवेळें व घी में डुबोते हुए एक छोटा अच्छा कौर तैयार कीया और धापू के मुंह की तरफ बढा दिया | अब धापू की बारी थी उसने भी अपने मखमल से हाथों से छोटा कौर बनाया और कीरते की तरफ बढाने को ही थी, कि धापू का हाथ धूजने लगा | कीरता समझ गया, उसने अपने हाथ धापू की तरफ बढाते हुए धापू के दोनों हाथ पकड़ कर उसके मखमली हाथ का कौर अपने मुंह तक ले गया | अब धापू का चेहरा शरम के मारे नीचे झुक गया |
अब दोनों एक दुसरे को कौर देने लगे और एक दुसरे की आंख से आंख मिलाने लगे | इतने में अचानक गोगर बिल्लें ने थाली में जोर से उनके हाथ पर पंजा मार दिया | जिससे दोनों का अचानक से ध्यान भंग हुआ और हडबडाहट से उछल पडे़ | देखा तो अब तक वे पुरा सोगरा कभी का खा चुके थे | वे केवल आंख में आंख डाले, दोनों हाथ थाली में डाले लंबे समय से बैठे थे | गोगर बिल्ले के खलल ने उन्हें उठकर हाथ धोने को मजबुर कर दिया |
अब धापू एटवाडी प्लेट लिए एक कोने में खडी थी और कीरता घूणीयें मेंसे पानी लेकर हाथ धो रहा था, कि अचानक .... "ऐ धापूडी..ऐ धापूडी" की आवाज सुनाई पडी़ |
धापूडी - "जी ... बापूजी..." कहकर बापू के सामने दौड़ पडी़, और बापू के माथे पर से सणीये के भारे को नीचे उतारा |
प्यासे बापू ने धापू से पानी मांगा | धापू ठाडी़ मटकी से बापू के लिए
पानी लेकऱ गई, तो कीरता भी धापू के पिछे-पिछे गया और बापू के धोक लगा दी |
बापू ने उस चेहरे को पहचानने की कोशिश के रूप में अपनी आंखो पर जोर डालते हुए उसकी तरफ देखा... पर चेहरा अनजाना सा नजर आया | इस बीच धापू बिच में ही बोल पडी- "बापू ओ कीरतो हैं ... म्हारें कक्षा में पढे हैं... हर साल कक्षा में सैंकड आवे हैं... भूरजी रो हैं |" भूरजी का नाम सुनते ही बापू ने गौर से उसकी तरफ टकटकी लगाकर देखा.. फिर धापू की तरफ ... दुबारा उसकी तरफ ... फिर धापू की तरफ .... |
धापू और कीरता भी विचार में पड़ गये | आखिर माजरा क्या हैं ....... ?
बापू की आंखो में आज आशा की एक कीरण जग चुकी थी |
बापू ने कीरता को आने का कारण पुछा, तो कीरता ने बापू को बताया की, 'दो दिन बाद घर में जागरण हैं इसलिए आपको बळीतें फाडने का कहने के लिए आया था |'
बापू में एकबार फिर उत्साह की ज्योत जगती नजर आई | बापू कीरते को बोले- " जरूर आऊंगा .... आज तो जरूर आऊंगा ... |
जवाब सुनकर कीरता घर के लिए चल पडा़ | गुआडी के अदबिच जाकर कीरते ने पिछे नजर दौडाई, तो देखा कि बापू उसे टकटकी लगाये देख रहे है, तो उसके पिछे धापू भी मंद-मंद मुस्करा रही हैं |
बापू ने कुल्हाडी़ उठाई और पास पडे़ छीण के टूकडे पर कुल्हाडी़ को रगड़कर धार करने लगा | धार करने के बाद धापू को आवाज लगाई ... ऐ धापू ..!
बापू की आवाज सुनकर धापू दौडकर नजदीक आई | बापू ने उसके चेहरे को गौर से देखा और हल्की सी मुस्कान बिखेर दी | और कुल्हाडी उठाकर चल पडा़ भूरजी के घर की तरफ |
अब भूरजी के घर पहुंचने पर बापू की नजर सबसे पहले कीरता पर पडी़ | कीरता दो पत्थरों के बीच तख्ता रखकर उस पर बैठे-बैठे किताब के पन्ने पलट रहा था |
कीरता ने धापू के बापू को घर आये देखकर राम-राम कर धोक लगाई और थणी पर लटक रही बगती से ठंडे पानी का लोटा भरकर ले आया |
बापू की नजर कभी लोटे पर तो कभी कीरते पर अटक रही थी | इतने में अचानक "राम-राम ..." की आवाज सुनाई पडी. | पिछे मूडकर देखा तो हाथ में गेडी़ लिए भूरजी खडे थे |
भूरजी ने बापू से गर्म जोशी से हाथ मिलाया | पर आज धापू का बापू थोडा़ नर्वस था ... |
भूरजी ने अमल की मनुहार करते हुए धापू के बापू के नर्वस चेहरे को पढ लिया था | भूरजी ने अमल की मनुहार करते हुए धापू के बापू को माडेही पाव तौला अमल गटका दिया | अमल देने के बाद धापू के बापू से भूरजी ने अपनी चिंता का कारण पुछा | तो बापू ने चेहरे पर मामूली सी चिंता मिश्रित मुस्कराहट लाकर कारण टालने का प्रयास कीया |
पर भूरजी के जोर देने पर बापू ने मन को भारी करते हुए, नजर झुकाकर कहा कि, 'घर में बडी़ हो रही लडकी से बडी़ बाप की चिंता क्या हो सकती हैं?'
इतना सुनते ही भूरजी आत्मविश्वास से लबालब होकर बोले "अरे ! समधी जी ये चिंता मुझ पर छोड़ दो" इतना सुनते ही बापू पागल की भांति भूरजी के पांवो में गिरने लगे |
यह देख भूरजी ने बापू को उठाकर गले लगा दिया और बोले कि, 'आज बळीतें फाडनें का बुलावा तो एक मात्र बहाना था ! मैंने "पिछली स्वतंत्रता दिवस पर धापू का धारा प्रवाह भाषण सुना था, तब से धापू को बिंदणी बनाने की दिल में ठान ली थी .."
समधी जी तुम यदि आज तैयार नहीं होते, तो भी मैं येनकेन प्रकारेण यह रिश्ता करने की कोशिश जरूर करता |
इतना सुनते ही बापू का सीना गर्व से फुल गया |
बापू ने अपने जेब से एक रूपया निकालकर होने वाले जवाई (कीरता) को पकडा़ दिया |
हाथ में रूपया देख कीरता भी मन ही मन धापू के बारे में सोचकर फुले नही समां रहा था |
अब भूरजी ने धापू के बापू को घुड-धनिया खिलाकर (नये समधी) को रवाना कीया |
बापू रास्तें में चलते-चलते फुले नही समां रहा था | जैसे ही घर पहूंचा, "धापू...ऐ..धापू ..." चिल्लानें लगा | इस बार बापू की आवाज में पुर्ण संतोष के भाव थे | धापू भागती हूई आई, धापू को देख बापू उसके गले लिपट गया | जैसे बहुप्रतिक्षित स्वप्न आज पुरा हूआ हो | धापू भी मन ही मन कीरते के बारे में सोचकर फुले नहीं समां रही थी |
आज धापू और कीरता यह सोच कर खुश हुए जा रहे थे, कि चलो, आज सहपाठीयों की दुआओं को आखिर पंख तो लग ही गये |
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🖋 दीप सिंह दूदवा
Bahut badya kahani sa
ReplyDeleteआज भी प्रेमचंद जिंदा हैं ...
ReplyDeleteशानदार भाषा शैली का प्रयोग किया है हुकुम ।
बहुत आनन्दित गर्व हुआ । बहुत बहुत धन्यवाद साहब को ।
Thanks
Deleteशानदार हुकम दीपसा।
ReplyDeleteआभार
Deleteस्नेहपुर्ण पढने के लिए
शानदार
ReplyDeleteआभार साहब
Deleteगजब दीपसा हुकम🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteगजब दीपसा हुकम🙏
ReplyDeleteघणो घणो आभार आपरो
DeleteSuperb writing,
ReplyDeleteThanks hukm
DeleteSuperb writing,
ReplyDeleteThank u hkm
Deleteबहुतखूब
ReplyDeleteभाषा और भावनाओं का अद्भुत संगम ...��������
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा ����
ReplyDeleteलेखनी को सलाम,एक कहानी भी चलचित्र से कम नहीं।
ReplyDeleteबहुत खूब
Bahut hi shandar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......... सचमुच कुछ समय के लिए में खो सा गया,ऐसा लगा मानो मेरे सामने कोई फ़िल्म चल रही हो, प्रेम की सुन्दर और पवित्र अभिव्यक्ति.........
ReplyDeleteबहुत सुंदर 🥰
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