Wednesday, January 17, 2018

जगतू की सगाई रस्म

आज कौआ घर के आंगन वाले नीम पर लगातार सुबह से ही बोले जा रहा था | कौऐं की मीठी बोली कीसी मेहमान के आने की संकेत थी | तब गांव में टेलीफोन व तार की सुविधा नहीं थी और ना ही इतने संसाधन थे | गांव के बुजुर्ग लोग पशु-पक्षियों व प्रकृति के संकेत मात्र से ही अनुमान लगा लेते थे कि आज क्या होने वाला हैं | आज कौऐं के लगातार बोलने से दादी ने अनुमान लगा दिया की आज तो पक्का ही जगतू को देखने के लिए मेहमान आ सकते हैं | क्योकिं कुछ दिन पहले ही पास के गांव वाले धरमाजी ने पडोसी धनजी के साथ समाचार भिजवाये थे, कि वो कानजी की लडकी जगतू को अपने पुत्र हरचंद के लिए कुछ दिनों में ही देखने आने का मानस बना रहे हैं इसलिए कानजी तक समाचार पहुंचाने का बोला था | ऐसे में कौएें की चेतावनी धरमाजी के आने के संकेत को पुख्ता कर रही थी |
अब तक घर के सारे सदस्य सतर्क हो चुके थे | सांझ भी धिरे-धिरे ढल रही थी | ऐसे में घर में हुई हलचल से जगतू भी सावचेत हो चुकी थी उसने आज अपने ननीहाल से मिली नीली ड्रैस पहन रखी थी जो उसके हल्के सांवले रंग में चार चांद लगा रही थी | सांझ ढलने के साथ जगतू अब चुल्हें पर आ चुकी थी | जैसे ही पहली रोटी बनी वैसे ही तवा हंसने लगा | उसने दादी को जोर से आवाज देते हुए कहा,"दादी मां आज तवो हंसे हैं"| दादी मां ने जगतू के पास में आकर कहा, "हां बेटा मेहमान आवे हैं रोटी अर सब्जी ठीक बणाइजे"| जगतू को पुर्वानुमान होते हुए भी दादी से मजाक में पुछा, " म्हारे मोमाळ ती मोमो आवता वेई घणा दिन हुआ हैं आया नै"| दादी ने बात टालते हुए कहा, "देख बेटा मेहमान आवै जदेइज ठा पडी़ कुण आवे हैं, खालसा बस रे आवण रो टाइम तो वै ग्यों हैं"| जगतू मन ही मन खुश हुए जा रही थी क्योकिं आज यदि वो ही मेहमान आते हैं, तो कल तक सगाई पक्की हो जायेगी |
सांय सात बजते ही गांव की तरफ बस का हॉर्न बजा, तब सब की निगाहें गांव की ओर से आने वाली पगडंडी पर टिक गई | देखा तो दुर से एक व्यक्ति साफा पहने हुए हाथ में लोहे का बक्सा लिए एक महिला के साथ कानजी के घर की ओर ही आ रहा हैं | कानजी ने खडे़ होकर निगाहें डाली, देखा की धरमाजी ही अपनी पत्नी के साथ आ रहे थे | कानजी ने अपने पुत्र गमना को आवाज देते हुए कहा,"अरे ! गमना धरमाजी रे सामो जा" | गमना ने फटाफट पगरकी पहनी और आने वाले गिनायत की मैजबानी के लिए सामने दौड़ पडा़ | गमना ने पहले राम-राम की फिर धरमाजी के हाथ से लोहे का बक्सा व उनकी पत्नी के हाथ से लाल घोडा़-काला घोडा़ चाय का थैला ले लिया और आगे-आगे चलने लगा | जैसे ही धरमाजी ने घर में प्रवेश कीया वैसे ही कानजी ने अतिउत्साह में राम-राम कहकर धरमाजी को गले लगा दिया | उनकी पत्नी को भी राम-राम कहकर अन्दर आने को कहा | कानजी की पत्नी ने जगतू की होने वाली सास की आगवानी की और आंगन के बीच में लाकर दरी बिछाकर बिठाया | जगतू की छोटी बहिन वगतू ने उनको पानी पिलाया | वगतू भी ग्यारवीं में पढ रही थी, एकबार तो धरमाजी की पत्नी ने सोचा यही जगतू हैं, पर एक कोने में चुल्हें पर खाना बनाते जगतू को देखकर ही समझ गई कि होने वाली बहू चुल्हें पर रसोईं बना रही हैं | कानजी की पत्नी उनसे समाचार लिए जा रही थी, तो धरमाजी की पत्नी जवाब के साथ-साथ चुल्हें पर रसोई बना रही जगतू को टुकर-टुकर देखे जा रही थी और मन ही मन खुश हुए जा रही थी, क्योंकि कुछ ही मीनटों बाद अपनी होने वाली बहू के हाथ का खाना नसीब होने खाने वाला जो था | पहले जगतू ने मेहमानो के लिए चाय बनाई और पुन: खाना बनाने में लग गई | दुसरी तरफ धरमाजी व कानजी के ठहाकों से अब पुरा घर गुंज रहा था |
 ऐसे लग रहा था जैसे दो मित्र लंबे समय बाद मिले हो | खुशी का जश्न इसलिए भी था कि दोनों को बराबर की जोडी़ मिल रही थी | एक तरफ धरमाजी के पुत्र हरचंद का इस वर्ष एमबीएसएस प्रथम वर्ष पुर्ण हुआ था | वहीं दुसरी तरफ कानजी की पुत्री जगतू ने भी इस बार बारहवीं कक्षा को पुरे जिलें में तृतीय स्थान के साथ पास कर, बीएससी प्रथम वर्ष में प्रथम रैंक के साथ मनपसंद कॉलेज में प्रवेश लिया था | दोनों के ही पुत्र-पुत्री प्रतिभावान थे| दोनो की आर्थिक स्थति तो सामान्य ही थी, पर दोनों ने ही बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दी थी | बातो का दौर चल ही रहा था कि इतने में जगतू ने शर्माते हुए अपनी होने वाली सास के चरण स्पर्श कीये | सास ने गौर से जगतू के चेहरे को देखकर संतोष की सांस लेते हुए, "जुग-जुग जीओ बेटी" का आशिर्वाद दिया | अब तक खाना बन चुका था | धरमाजी के लिए बाहर खाना लगाया गया तो अन्दर की तरफ जगतू की होने वाली सास के लिए | अब मनवार का दौर चल पडा़, बाहर की तरफ कानजी अपने गिनायत को मनवार पर मनवार कर ठहाकें लगा रहे हैं तो अन्दर की तरफ जगतू की मां होने वाली समधन को मनवार कीये जा रही थी | इस तरह सबने हंसी-खुशी से खाना खाया | दोनों परिवार वालों ने एक दुसरे के समाचार लिए और एक दुसरे को पुर्णतया जाना | दोनों की ही बातो से लग रहा था कि दोनो बडे़ खुश थे |क्योंकि दोनों को जिस तरह के रिश्ते की चाह थी वैसा ही रिश्ता मिला था | इस तरह बातो ही बातो में आधी रात कब गुजरी कोई पता ही नहीं चला, अब सब राम-राम कहकर सोने चले गये |
जैसे ही सुबह हुई जगतू के परिवार के सभी सदस्य जल्दी से उठ गये और गाय-भैंस दुहने व अन्य काम में लग गये | जगतू ने सभी के लिएे चाय बनाई | मेहमान भी जग चुके थे |अब सबने एकसाथ बैठकर चाय पी | जगतू भी अब स्नान कर नये कपडों के साथ तैयार हो चुकी थी | अब जल्द ही सगाई की रस्म को भी सुबह-सुबह ही शुभ मुहुर्त में निपटाना था | क्योंकि धरमाजी के गांव की ओर जाने वाली एकमात्र बस भी दस बजे ही आने वाली थी | अब
जगतू को एक छोटे से बाजोट पर बिठाया गया | जगतू की सास ने उसे पहले तिलक लगाया फिर अंगुली में अंगुठी पहनाई और मुंह में गुड देते हुए अपने परिवार की परंपरा, संस्कृति के अनुरूप चलते हुए निरंतर पढने की भोळावण दी | जगतू भी अब थोडी खुल चुकी थी | उसने अपने सास से धोक देकर आशिर्वाद लेते हुए नौकरी लगने तक पढने की इच्छा जाहिर की | सास ने भी निरंतर पढते की बात कहते हुए मजाकिया लहजे में कहा कि," हरचंद भी डॉक्टर बणैला, इण वास्ते थू भी पढाई निरंतर राखजै नी तो थारी और हरचंद जोडी़ कीयां जमैळा" | इस बात पर सबने जोर का ठहाका लगाया जिससे घर का माहौल एकदम हल्का हो गया, अब ऐसा नहीं लग रहा था कि घर में कोई मेहमान हो क्योंकि अब सब जने एक ही परिवार के सदस्य लग रहे थे | इतने में धरमाजी ने भी घर में प्रवेश कीया और कानजी से मजाकिया लहजे में कहा कि" समधी जी डॉक्टर साहब रे घर ती डॉक्टरोणीसा रा दर्शन में भी कर लेवूं, बेटा ने आशिर्वाद रो हक तो अब म्हारों भी बणै हैं" | और धरमाजी ने जगतू को अपने पास बुलाया | जगतू ने अपने ससूर के धोक लगाई और सिर झुका कर खडी़ रही  | ससूर ने जेब से ग्यारह सौ रूपये निकालकर जगतू को देते हुए कहा कि, "बेटा खुब पढाई करजै, थानै ही म्हारों घर संभाळणों हैं"| इस तरह बातो ही बातो में जगतू व हरचंद के सगाई बंधन की रस्म को अंतिम रूप दिया जा रहा था, कि इतने में दुर से बस का हॉर्न सुनाई दिया | धरमाजी और उनकी पत्नी बस के लिए तैयार हुए | अब दोनों ही परिवार बेहद खुश थे | अब धरमाजी व उनकी पत्नी भारी मन से विदाई ले रहे थे | आखिर मन भारी हो भी क्युं न! उनकी बहू से विदा जो ले रहे थे | कानजी व उनकी पत्नी के साथ-साथ जगतू की दादी भी उन्हें घर से बाहर तक छोडने के लिए आये | समधी व समधन जी ने कानजी व उनकी पत्नी को अपने घर आने का न्यौता देते हुए विदाई ली | गमना ने उनके सामान को पकडा़ और बस स्टैंड तक छोडने गया | और इस तरफ घर में वगतू भी जगतू को टॉक्टरोणीसा-डॉक्टरोणीसा कहकर मजे लेने से नहीं चुक रही थी  | जगतू मजाक में वगतू की चोटी खींचकर मुक्के लगाते बनावटी गुस्से में कह रही थी, "बोल अब कहेगी डॉक्टरोणीसा"| इधर वगतू भी मिठाई खिलाने की शर्त पर ये शब्द नहीं कहने की जिद्द कर रही थी |
आज कानजी व उनका परिवार बडा़ खुश था | दादी भी पुरे जोश में थी | बहुत दिनों से उलाहने सुनने वाली दादी ने कहा कि, " आण दे अब उण वेलजी पंच ने, जो गांव-गांव केहतो फिरतो कि ऐहडो पछै कानीयों काई उणरी छोरी ने  डॉक्टर ती परणा देई, इती पढावणउ काई फायदो सामै लडको भी तो ढंग रो पढ्योडो मिलणो चाइजै"| कानजी ने मां को समझाते हुए कहा, "मां रैहण दे लोग तो केहता फिरैैला किण-किण रो मुंह आपां बंद कर सको" | इधर कानजी व उनकी पत्नी एकदम निश्चिंत हो चुके थे |अब जगतू व वगतू की पढाई के खातिर गांव के लोगो व पंचो का एक भी ताना कभी नहीं सुनना पडेगा |
चित्रपट चल रहा हैं दृश्य बदल रहे थे |
- 🖋 दीप सिंह दूदवा

No comments:

Post a Comment

महात्मा गांधी: पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन |

महात्मा गांधी : अहिंसा के पूजारी, राष्ट्रपिता व भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अगुवा | महात्मा गांधी द्वारा अपनी पत्नी कस्तूरबा को लिखे एक ...