Tuesday, January 9, 2018

'आज भी कायम हैं गांव री अपणायत'

फोन आया कल जागरण की बैठक हैं, आपको जरूर आना हैं | 'बैठक' का नाम सुनकर आनंद आ गया | 'जागरण व बैठक' मेरे लिए बडा कर्णप्रिय शब्द था | मुझे समय मिलने पर जागरण व बैठक में जाने की हमेशा उतावळ व उत्सुकता रहती थी | क्योकि वहां जाने पर मुझे ग्रामीण संस्कृति, अपणायत व निस्वार्थता के जीवन दर्शन को करीब से महसुस करने का अवसर प्राप्त होता था | वैसे आज रविवार भी था | दस बजे ही तैयार होकर बैठक के लिए रवाना हो गया | जैसे ही वहां पहुंचा, तो जगह-जगह नीम के नीचे ट्रैक्टर व जीपे खडी मिली | मैंने भी एक तरफ अपनी गाडी खडी की, उतर कर बैठक में पहुंचा | वहां सभी ने हाथ जोडकर मुस्कराते हुए मेरा सहर्ष अभिवादन कीया | अभी जाकर बैठा ही था, कि हीमतो बा ने एक लडके को आवाज लगाते हुए कहा- " ए छोरा बगना वाळू का भाळे पोणी रो लोटो लाव" और लडका भागते हुए पानी का लोटा ले आया | इतने में गमनो बा आगे से मनुहार करके हुए सीधे मेरे पास आ गये, और अमल आगे करते हुए कहा- "लो सा आज तो आपने अलम लेणोइज पडेई" और अमल की कोतली मेरे सामने बढा दी | मैने भी हँसते हुए बा को यह कहते हुए मनवार टाळ दी, कि "अजे अमल लेवा में ओपोरे टेम हैं|" तब बा ने भोळावण देते हुए कहा कि "मोरे तो मनवार रो फर्ज हैं पर आप नशा-पोणी ती थोडा अलगाइज रेरावजों |"
इतने में बातो ही बतो में चाय आ गई | अब मैं चाय की चुस्की के साथ आस-पास बैठे बुजुर्गो की बातो में हां में हां मिलाते हुए बातचीत भी कर रहा था | बैठक का दृश्य हमेशा की तरह अजीब था | एक तरफ डोडे गळाये जा रहे हैं, तो दुसरी तरफ अमली एक दुसरे को अमल की मनवार कर रहे हैं | वही तीसरी तरफ चिलम को एक-एक करके कस लेते हुए आगे बढा रहे हैं | साथ-साथ में कभी खेती तो कभी बारिश, कभी राजनीति, तो कभी स्कुली बच्चों के एडमीशन को लेकर भी चर्चा का दौर जारी हैं | बातों ही बातों में सब मशगुल थे | बैठक में कभी हंसी-ठिठोली तो कभी गम्भीर बातें भी निकल रही थी | हीमतो बा भी मेरे पास आकर बैठ गये, और हालचाल पुछने लगे | मैं भी उनको जवाब देता रहा | पास बैठे बुढिये भी मेरी बात को गंभीरता से सुनने लगे, कि कोई गंभीर बात सुनने को मिले | पर सामान्य बात चलती रही | इतने में पास से गुजर रहे एक छोटे बच्चे (पांच वर्ष) को हिमतो बा ने कहा- "ए ठोकीरा अटे आव अळगो-अळगो का धोडे ए देख शशमों वाळा डोक्टरसा आईया हैं, पाय नी आईयो तो सुई पी देई, नीतर एक कविता बोल पी |" बच्चे ने भी मेरी तरफ घुर कर देखा, और जोर जोर से चिल्लाने लगा - "मशळी जळ की रोणी हैं, जीवण उसका पोणी हैं .. हाथ लगावो तो डर जायेगी, बार निकाळो तो मर जायेगी|" इतना सुनाकर वहां से भाग गया | बुढिये उस बच्चे की कविता सुनकर आनंद विभोर हो गये, और उनको बडा़ मजा आया | एक मीनट की कविता के बाद चिलम का कस ले रहे समेळो बा ने भविष्यवाणी की - " ओ सोरो हुशियार हैं मोटो वेन कलेक्टर बणी |" तभी मालो बा ने बीडी का धुंआ नाक से निकालते हुए समेलो बा की बात बिच में ही काटते हुए भविष्यवाणी  कर दी - " मू कोउ ओ छोरो मोटो वेन पुलीस बणी|" इतने में सब हंसते हुए अपने-अपने कयास लगाने लगे | मैं उन भोळे-भोळे कयासों को सुनकर मन ही मन मुस्कराये जा रहा था | तभी भोळा आया और बैठक के बिचो-बीच बैठे हीमतो बा के कान में कुछ कहकर चला गया | हीमतो बा उठे और अन्दर गये और कुछ देर बाद बाहर आ गये | बैठक के बीच आकर हीमतो बा हाथ जोडते हुए बोले- "लो सा खाणों तैयार हैं, पेला मेमोन-मेमोन पधारों|" तभी हम बीस-पच्चीस जनें उठ गये | नेनीया ने सभी के हाथ धुलवाये
| फिर हम खाने के लिए हीमतो बा के पिछे-पिछे अन्दर बडे़ आंगन में चले गये | वहां  देखा तो छोटे बाजोटीये (पाटीये) बिछा रखे थे | सब जने वहा जाकर बैठ गये | सबसे पहले गलबा साबलिया लेकर आया, और दो-दो रोटी रखता गया गलबा के बाद खसीया आया और सभी के गुड रखता हुआ चला गया | फिर पिछे-पिछे वीरमा आया, और वाडकी (घीलोटी से बडी) से घी परोसता चला गया | परम्परा है वाडकी से घी परोसते वक्त जब तक सामने वाला मना न करे तब तक घी की धार थाली में डाली जाती हैं, फिर चाहे पाव घी या आधा कीलो भी कोई खाने वाला क्यों न हो ! घी के बाद जगीया वाल्टी में ग्वार फली की सब्जी परोसता गया | उसके बाद भीबा आया, वो दाल परोसता हुआ चला गया | इसके बाद पदमा ने सभी के काटे गये कांदे(प्याज) परोसे | कांदे के बाद लक्ष्मणा आया और मुझे रायता परोसने लगा | जैसे ही रायता चमसे से थाली में डालने ही वाला था, कि अचानक हीमतो बा बिच में चिल्लाये "ऐ डफोळ बगरू (मुर्ख) हैं का वाटको लाव वाटको (कटोरी) , वाटका माय परूस | लक्ष्मण भागते हुए गया और वटकी ले आया और वटकी में मुझे रायता परोसने लगा | इतने में फिर हीमतो बा बोले - "दीपसा ऐ आजकल रा छोरा भणीया पण गणीया नी |" और कहने लगे, " अणो जतरा मैं भणीया वेता तो, कलेक्टर नेई पासो बेरावता|" सब जने खाने के साथ-साथ हीमतो बा की बातो का पुरा रसास्वादन भी कर रहे थे | इतने में हीमतो बा फिर बोले - "दीपसा थे कतरी सोपडी भणी (कितनी पढाई की) ?" मैंने कहा,"बा मैं सोलह सोपडी (बीए, बीएड) भणी हैं !" बा ने आश्चर्य के साथ- "का वात कीदी सोलवी पास ?" मैनें फिर कहा - "हां बा !" इतने में पास खडे धरमे को आंख दिखाते हुए हीमतो बा बोले-"डोफा धरमीया ! भणेई तो होरो वेई नी तो अटे यूज भैं-गाय रा पुछ ओमळजे|" खाने के साथ-साथ बातों का भी सिलसिला चल  रहा था | इतने में मैं खाना खाकर उठने ही लगा, तो हीमतो बा भागते हुए आये और एक रोटी जबरदस्ती रखते हुए बोले "म्हारी मनुआर तो राखणी पडेई एक फलको (रोटी) म्हारे तरफ ती जीमणो पडेई!" मैं भी उनकी बात कैसे टाल सकता था, और वापिस जम गया | इतने में पिछे से गमनो बा ने भी एक रोटी रख दी और बोले-" हीमता री मनुआर राखी तो एक फलको म्हारो भी जीमणो पडेई|" मेरे पास उनकी मनुआर रखने के अलावा कोई सहारा भी नहीं था | वैसे मुझे पुर्वानुमान भी था कि दो रोटी तो ज्यादा खानी ही पडेगी | क्योकि ऐसी मनवार मेरे साथ अक्सर होती रहती थी, जब भी मैं खाने के बाद उठने वाला होता | अब हीमतो बा और गमनो बा की मनवार मानने के बाद थाली लेकर  उठने ही वाला था कि हीमतो बा वापिस जोर से चिल्लाये -" ऐ नरींगा का देखे घुना वाळू लोटो लाव लोटो, थारो ध्योन कटे हैं?" और मुझे थाळी मे ही शळू (हाथ धलुवाये) करवा दिया | अब मेरा पेट तडातड हो चुका था | हीमतो बा भी मेरे साथ-साथ बाहर आये और मुझे नीम के नीचे ले गये | नीम के नीचे पहुंचकर वापिस जोर से आवाज लगाई "ऐ नरींगा खाटळों (चारपाई) लाव |" और मुझे थोडी देर वही नीम की गहरी छांव में आराम करने की मनवार करने लगे | मैने बा को कोई जरूरी काम बताकर पुन: जल्द मिलने आने का वादा करते हुए निकलने की परमीशन मांगी | तब हीमतो बा ने मेरे दोनों हाथ पकडते हुए कहा - " थे हमेशा यूइज झुठों वादो करो हो, कदेई आवता तो हो नी | और हीमतो बा बोले- "हमके घालो म्हारी सोगन की पासा जट आवोला|" मैंने भी हीमतो बा की आंखो में आंख डालकर सोगन के साथ कहा, "बा हमके टाईम मिलताई जरूर आवुला" का वादा दिया | अब मैं जाने के लिए जैसे ही पिछे मुडा तो मेरे जस्ट पिछे एक कुत्ता खडा था | हीमतो बा कुत्ता देख फिर जोर से चिल्लाये - "टेगा ! आगो मर" और पास खडे खसीया को कहा- "अरे खसीया ! अण गंडक (कुत्ते को) रे भाटो ठोक भाटो!" और बा मुझे गाडी तक छोडने आये | जैसे ही मैं गाडी में बैठकर गाडी़ मोडने लगा, तो पिछे खडे हीमतो बा एकबार फिर जोर से चिल्लाये,- " अरे दीपसा ! गाडी पेला थोडी लारे (पिछे) आवा दियो और पसे धके (आगे) लो |"  गाडी आगे से पुर्णतया मुडने की स्थति में होते हुए भी मैनें हीमतो बा की बात रखने के लिए गाडी को थोडी पिछे ले आया, और फिर आगे करते हुए रवाना हुआ | गाडी के पिछे की तरफ  खडे हीमतो बा दोनो हाथ जोडकर मुझे अभिवादन करने लगे | मैं भी मुस्कराते हुए उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ गया | मैं अब गाडी चलाते-चलाते सोच रहा था, कि इन लोगों में आज भी कीतना निस्वार्थ मोह-प्रेम हैं ! क्या हम सहीत पिछे की पीढी़ इस मोह प्रेम को स्थाई रख पायेगी .................??
अब मन बहलाने के लिए जैसे ही गाडी में टेप चालु कीया, गीत बजने लगा, "तालरीयां-मगरीयां रे ..... मोरू बाई ल्यारे रिया ........आयो रे धोरों वाळों देश .......
अब चित्रपट चल रहा था, और दृश्य बदलते जा रहे थे !
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- 🖋 दीप सिंह दूदवा



13 comments:

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  3. हमे हमारी गांव की संस्कृति पर गर्व है ।
    जोरदार कहानी हुकुम।

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  4. apki jivan se judi bate bahut nirali he hkm..padne me bahut maja ata he ..jay sang sakti

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  5. गज़ब, हर दृश्य आँखों के सामने तैरने लगा��

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