Thursday, January 4, 2018

'गोबर के लिए सर्जिकल स्ट्राईक'


सुबह चार बजे ही मां ने चिंतित होकर चमेली को आवाज दी- 'अरे ऐ चमेली ! उठ परी, आज भी लेट वैग्या तो दुजा लोग पोईला (गोबर) ले जाता रैवे |'
पुरे गांव में अधिकांश कच्चे ही घर थे | गांव में शादियों की सीजन, होली, दिवाली या कीसी नये त्यौहारों पर घरों को गोबर से लिपा जाता था | गांव में इतने भी पशु नहीं थे कि पुरे गांव को एक साथ इतना गोबर नसीब हो सके | इसलिए इन दिनों पुरे गांव में ही गोबर के लिए भागदौड़ मची थी हुई थी |
कल ही चमेली और उसकी मां रम्भा काकी सुबह पांच बजे ही उठकर गोबर के लिए आस-पडौस के बेरों व बाडो़ में गये थे, लेकिन उनसे पहले ही गांव के कोई ओर लोग गोबर उठा ले गये थे | गांव में सामाजिक सद्भावना का माहौल था | कीसी के भी बाडे़-बेरें  से कीसी भी जात-पात के कोई भी लोग गोबर ले जाओ, कोई मनाही नही थी | बस! शर्त यह थी कि पहले आओ पहले पाओ | जरूरी नहीं था कि गोबर उसी टाईम उठाओ, यदि आपने सबसे पहले जाकर वहां राख से उस गोबर के चारों तरफ लकीरें खींच दी, तो वो गोबर भी आपका ही माना जायेगा | फिर आप उस गोबर को दिन उगने के बाद भी वहां से उठा सकते थे, तब तक उसके कोई हाथ भी नही लगाता था | ये सुविधा उन परिवारों के लिए कारगार थी, जिनमें विधवा या जिन परिवार में कम सदस्य होते थे ताकि वो दिन उगने के बाद दुसरें सदस्यों की मदद से गोबर उठाकर अपने घर तक ले जा सकते थे |
आज रम्भा काकी ने अपनी पुत्री चमेली को चार बजे ही उठा दिया था | दोनों ने उठकर जल्द से मुंह धोने के बाद तगारीयां उठा दी और चल दिये भुरजी बा के बेरे की तरफ | भुरजी बा के बेरे पर करीब पन्द्रह-बीस भैंसे थी इसलिए पुरे गांव की नजर सबसे पहले भुरजी बा के बेरे पर ही रहती थी | दोनो के कदम तेज गति से भुरजी बा के बेरे की ओर चलने लगे | जैसे ही मां-बेटी वहां पहुंची, देखा तो छगनी व उसकी मां पहले से ही वहां गोबर उठा रही थी | उनको देखते ही मां ने धीमी मुस्कराहट के साथ चमेली की तरफ देखा जैसे ऐसे कह रही हो कि आज का जल्दी उठना भी व्यर्थ चला गया | जैसे ही छगनी ने चमेली को देखा तो दोनों एक दुसरें के सामने देख मुस्करानें लगी | तब छगनी ने चमेली से कहा- 'आपणे तो आज फाईनल कोम वैग्यो, तीन दिन ती भुरजी बा रे अठा ती मैइज पोईला (गोबर) ले जावो हो, आज तो बस लास्ट तीन-चार तगारीज पोईला री जरूरत हैं | बाकी वाळा पोईला (गोबर) थे ले जा सको हो |' इतना सुनकर चमेली ने चैन सी साँस ली और सोचा 'चलो आज का फेरा तो उपर नहीं पडा़ !'
अब चमेली और उसकी मां रम्भा जल्दी-जल्दी गोबर इकट्ठा करने लगी, देखा तो और लोग भुरजी बा के बेरे की ओर आये जा रहे हैं लेकिन चमेली व उसकी मां को वहां देखकर हँसते हुए वहां से वापिस दुसरें बेरों व पशु बाडो़ की तरफ भागे जा रहे हैं | चमेली और उसकी मां अब छगनी व उसकी मां द्वारा तीन-चार भैंसो का गोबर उठाने के बाद शेष रही भैंसो का गोबर इक्ट्ठा करने लगी | एक जगह सारा गोबर एकत्रित कर मां-बेटी तगारीयों से वो गोबर अपने घर ले जाने लगी | आज दोनो बडी़ प्रसन्न थी | आज वो दोनों जिस गली से भी गुजर रही होती, उस गली की औरतें बतियाती हुई कह रही थी - 'देखो ! आज चमेली अर उणरी मां गोबर ल्यायों रो, कालै आपणै भी बैगो उठणो पडैळा|' दुसरी तरफ चमेली और उसकी मां गांव की गलीयों से खुशी से मुस्करातें हुए आगे बढ रही थी | आज चमेली और उसकी मां की खुशी देख ऐसा लग रहा था जैसे दोनों ने एकसाथ आईएएस क्लियर कर लिया हो | जैसे ही दोनों ने तगारी उठायें घर में प्रवेश किया कि मै..मै..मै..मैं.. की आवाज ने उन्हें चाय की याद दिला दी | अब चमेली लोटा लिए बकरी को दुहते हुए मन ही मन प्रसन्न हुए जा रही थी और एक तरफ कोनें में पडी़ तगारीयों को भी लगातार निहारें जा रही थी |
🖋 दीप सिंह दूदवा

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