छुट देकर पुंछ वाली पतंग को उडा़ना
हवा नहीं होने पर पहाडी़ पर चढ़ जाना
आखि़र पहाडी़ कीसको पसंद नहीं थी
पहाडी़ का नाम सुनकर ही दर्जनों दोस्त का
पतंग को छुट देने के लिए भागे चले आना
पहाडी़ की चोटी से पतंग को उडाना
तेज हवा में उसका फट जाना
और फटने के बाद थोर के चिपचिपे सफेद दूध से उसे छिपकाना
बहुत आनंददायक होता था
पतंग के टूटने पर दर्जनों दोस्तों का उसके पिछे टूट पड़ना
और चंद सैकंडो़ में पतंग का अपहरण कर ले आना
पतंग के चक्कर में पहाड़ से उनका
फिसलना
गिरना
घुटनों से खुन का झरने की भांति बहना
पर,
कीसी से कीसी का कोई गिला-शिकवा नहीं
सुबह से शाम तक केवल और केवल पहाडी़ पर भागते रहना
बस ! केवल और केवल कुछ बेर और पानी के सहारे
न भुख
न प्यास
न थकान
न शिकायत
यही तो था सुनहरा बचपन
आज जब जवानी की इस उम्र में बचपन में झांकते हैं
तो, वे सुनहरे दिन आंसु टपका जाते हैं
दोस्ती के सच्चे मायने ही कुछ ओर थे
स्वार्थ का नामो निशां नहीं था
सब तरफ स्वर्ग ही स्वर्ग था
आज जब लोग कहते हैं
कि आज मकर संक्रांति हैं
तो, अजीब सी हंसी होठो पर आ जाती हैं
और वो हँसी एक सवाल खडा़ कर जाती हैं
क्या यही मकर संक्रांति हैं ?
🖋 दीप सिंह दूदवा
हवा नहीं होने पर पहाडी़ पर चढ़ जाना
आखि़र पहाडी़ कीसको पसंद नहीं थी
पहाडी़ का नाम सुनकर ही दर्जनों दोस्त का
पतंग को छुट देने के लिए भागे चले आना
पहाडी़ की चोटी से पतंग को उडाना
तेज हवा में उसका फट जाना
और फटने के बाद थोर के चिपचिपे सफेद दूध से उसे छिपकाना
बहुत आनंददायक होता था
पतंग के टूटने पर दर्जनों दोस्तों का उसके पिछे टूट पड़ना
और चंद सैकंडो़ में पतंग का अपहरण कर ले आना
पतंग के चक्कर में पहाड़ से उनका
फिसलना
गिरना
घुटनों से खुन का झरने की भांति बहना
पर,
कीसी से कीसी का कोई गिला-शिकवा नहीं
सुबह से शाम तक केवल और केवल पहाडी़ पर भागते रहना
बस ! केवल और केवल कुछ बेर और पानी के सहारे
न भुख
न प्यास
न थकान
न शिकायत
यही तो था सुनहरा बचपन
आज जब जवानी की इस उम्र में बचपन में झांकते हैं
तो, वे सुनहरे दिन आंसु टपका जाते हैं
दोस्ती के सच्चे मायने ही कुछ ओर थे
स्वार्थ का नामो निशां नहीं था
सब तरफ स्वर्ग ही स्वर्ग था
आज जब लोग कहते हैं
कि आज मकर संक्रांति हैं
तो, अजीब सी हंसी होठो पर आ जाती हैं
और वो हँसी एक सवाल खडा़ कर जाती हैं
क्या यही मकर संक्रांति हैं ?
🖋 दीप सिंह दूदवा
No comments:
Post a Comment